मैं इंसान हूँ

मैं इंसान हूँ, मेरा मज़हब कोई नहीं है |
मैं इंसान हूँ, इसमें गज़ब कोई नहीं है |

मैं ही मैं हूँ, चारों जानिब,
मैं ही ख़ुदा हूँ, मेरा रब्ब कोई नहीं है |

मैंने बनाया और फिर मैंने मिटाया |
मैंने काटा और मैंने ही कटाया |

मैं ही क़त्ल हूँ, क़ातिल भी मैं,
मैं इंसान हूँ, मेरा सबब कोई नहीं है |

दुनिया को देखता हूँ सर के बल,
मैं इंसान हूँ, मुझसा अजब कोई नहीं है |

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