जिसने मुझको चाहा उसका ना हो सका,
जिसे मैंने चाहा वह मिला ही नहीं |
फ़िर आगे हौसला हुआ ही नहीं,
ज़िंदगी से कोई फैसला हुआ ही नहीं |
एक रात जो हर दिन को खा गयी |
नाजाने अकस्मात कहाँ से आ गयी ?
ऐसा बंजर किया चमकते गुलिस्तां को,
दरख्तों पर फ़िर घोसला हुआ ही नहीं |
फ़िर आगे हौसला हुआ ही नहीं,
ज़िंदगी से कोई फैसला हुआ ही नहीं |
मंज़िल ना दिखा के अब मुझे इसका शौक़ नहीं |
लिख रहा है जो वह अजब है कोई ज़ौक नहीं |
राह में भटकाया चांदिनी से इस क़दर,
फ़िर दिल कोई सिलसिला हुआ ही नहीं |
फ़िर आगे हौसला हुआ ही नहीं,
ज़िंदगी से कोई फैसला हुआ ही नहीं |