मुझे शराबी-शराबी मत कहो |
आदमी मजबूरी में पीता है |
चाहे कितनी भी अग्निपरीक्षा दे दे,
दुनिया की नज़र में तो बुरी सीता है |
एक ही इंसान हरिउल्लाह मिला था,
कलयुग में बेचारा बेताब ही जीता है |
तू भी ज्ञानी, मैं भी ज्ञानी, क्या फर्क ?
किसी की क़ुरान और मेरी किताब गीता है |
कही दूर छुपकर, पीकर, वो ख़ुदा भी,
दर्द से फटा अपना हिजाब सीता है |
आखिरी पंक्ति में दिल जीत लिया।