ज़िंदगी यूँ है फसी

हालत पर हमारी आती है उन्हें हँसी |
क्या करें ? ज़िंदगी यूँ है फसी |

ना है आँखों में आँसू, ना होठों पे हँसी,
ना रात को चैन, ना दिन को सुकून |
जलाते रहते है अपने दिल का खून |

पीसते रहते है अपने आप में हम,
दिल वीरान है, सौ है ग़म |

वह कहते है — पागलपन है तुम्हारा,
हम कहते है — है बेकसी |
वह पूछतें है — क्यों ज़िंदा हो ?
हम कहते है — है बेबसी |
क्या करें ? ज़िंदगी यूँ है फसी |

10 thoughts on “ज़िंदगी यूँ है फसी

  1. पीसते रहते है अपने आप में हम,
    दिल वीरान है, सौ है ग़म |
    lajwab lekhan.

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