तो क्या हुआ ?
बस इतना ही ना ?
कोई नहीं होगा, हम-तुम अकेले जी लेंगे |
बस इतना ही ना ?
आँगन में फूल कहाँ है ?
घर में आँगन कहाँ है ?
पर घर ही कहाँ है ?
घर के आभास से फ़िलहाल जी लेंगे |
बस इतना ही ना ?
अपने आप से मिल लेंगे |
अपने से ही बात करलेंगे |
हम ख़ुद ही इंतज़ार बन जायेंगे |
हूँ ख़ुद ही अपने दोस्त बन लेंगे |
बस इतना ही ना ?
मिट्टी के हम है |
मिट्टी में मिल जायेंगे |
सब को अकेले आना है |
सब को अकेले जाना है |
हम भी जी लेंगे |
बस इतना ही ना ?
तो क्या हुआ ? बस इतना ही ना ?
Beautiful poem.
Omg! Thanks so much. I have just started writing!
My pleasure. You write very well 🙂
बहुत अच्छी सोच है
Thanks a lot dear!