कितना बड़ा ज़ख्म दिया गहरा |
यह ज़मीन खा गयी यार मेरा |
वक़्त की कितनी बद्सलुखी है |
यह ज़मीन कितनी भूखी है |
ना जाने कितने थे वह कलंदर,
सबको ले लिया अपने सीने के अंदर |
इसकी अदा कितनी रूखी है |
यह ज़मीन कितनी भूखी है |
अब नाजाने किसकी बारी होगी ?
जाने किसपर ये घड़ी भारी होगी ?
रो-रो अब मेरी आँख सुखी है |
यह ज़मीन कितनी भूखी है |
bhut khub !
Thanks a lot.