बेमौत ना मरे, तो क्या मरे ?
मौत आकर भी ना मरे, तो क्या मरे ?
ज़िंदगी के पीछे इतना हंगामा क्या ?
खुद के लिए ना मरे, तो क्या मरे ?
बारिश में ही तो भीगने का मज़ा है
ऐसे ही मरे, तो क्या मरे ?
एक बाज़ी खेल ही लो आज मेरे साथ,
बिना हारे मरे, तो क्या मरे ?
मेरी बात मान लो, भले लगे अजब,
पीकर ना मरे, तो क्या मरे ?
ग़ज़ब की ग़ज़ल
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