बाग़म-ए-शाम थी, ना राह-ए-हौसला था |
बस प्यार की याद थी और उनका फैसला था |
फिर भीगी हुई शाम ने पुकारा मेरे होठों को,
फिर सुलगते अंगारों ने पुकारा मेरी चोटों को |
ना, चाह थी, ना चाहतों का सिलसिला था,
आँखों में तूफ़ान और दिल में ज़लज़ला था |
पुकारता रहा यार को मेरे ताहद्-ए-नज़र,
जाने उसने दिया प्यार मैं किस बात का अज़र |
महफ़िल जवान थी, चारों और काफिला था,
सर उठकर देखा तो, बस मेरा ही दिल जला था |
Heartfelt… Beautiful words Agastya ji.
Thanks a lot.
Nice Agastya ji
Nice a lot.
Sbd nhi h bht sundar
Thanks a lot!