तुम अपना खून लाओ, मैं लाऊँ अपना खून,
तुम सिंध की चादर लाओ, मैं लाऊँ कश्मीर की ऊन |
फ़िर बात करते है तुम्हारी और मेरी दुश्मनी की |
लाल बहारें बहुत देखली अब लाल चमन में,
तुम अपने वहाँ से अमन लाओ, मैं लाऊँ यहाँ से सुकून |
फ़िर बात करते है तुम्हारी और मेरी दुश्मनी की |
चलो सरहदें बाँट लेते है इस बार ओ अजब,
तुम अपनी परवाज़ लाओ, मैं लाऊँ अपना जूनून |
फ़िर बात करते है तुम्हारी और मेरी दुश्मनी की |
ए दुश्मनी तू वो बात है , जिसने बात करना सिखलाया। बहुत खूब