फासले इतने बढ़ गए की तु से आप हो गये |
इतनी दुर आ गए की अगस्त्य से जनाब हो गये |
सबको मिली सज़ा बारी-बारी |
ख़्वाब जितने थे सारे तारीफ़ से अज़ाब हो गये |
कभी कोई फूल खिला ही नहीं |
वह उल्फ़त के बीज खाद से तेज़ाब हो गये |
उज़्र इतने है ना आने के आपके, यार अजब |
एक-एक मुलाक़ात के लिए बेताब हो गये |