नंगी रात में एक कहानी अकेली खड़ी थी |
एकदम नंगी |
भीड़ के दिमाग सी नंगी |
दरिंदो के सोच सी नंगी |
गरीब के छत सी नंगी |
बिना चश्मों की आँख सी नंगी |
राजकारण सी नंगी |
एकदम अकेली |
मासूम गरीबी सी अकेली |
सच्ची इंसानियत सी अकेली |
भूक सी अकेली |
न्याय सी अकेली |
इस कविता सी अकेली |
और कधी भी क्या थी,
बस कोई लाश सी खड़ी थी |
नंगी रात में एक कहानी अकेली खड़ी थी |
सारी रात बिकती रही |
इधर से उधर खिसकती रही |
सुनती रही, सुनाती रही |
शांत रही |
शांति से भी शांत |
लोग एक-एक कर लूटते रहे |
सब ने टुकड़े-टुकड़े किये |
आपस में बाँट लिए |
परत दर परत रंग दिखे |
लोग दिखे |
शहर दिखे |
कहीं उनमें आप तो नहीं थे ?
तो कौन थे वह ?
पता नहीं |
वह रात भर चुप-चाप खड़ी थी |
नंगी रात में एक कहानी अकेली खड़ी थी |
Very deep meaning poem
Thanks again.
Title of the poem is very impressive
Thanks a lot dear. I write Hindi pulp-fiction on that name. You can can in the category section, if interested.
बेहतरीन