दर्द को आवाज़ बना लो |
अंत तो आगाज़ बना लो |
दुनिया शायद सुन ले,
चीख़ को साज़ बना लो |
जैसा करोगे, वैसा भरोगे,
मुर्रव्व्त को रिवाज़ बना लो |
खुश रहना हो जो तुम्हे,
खुशनुमा मिज़ाज बना लो |
याद आये जो बचपन, अजब,
कागज़ का जहाज़ बना लो |
दर्द को आवाज़ बना लो |
अंत तो आगाज़ बना लो |
दुनिया शायद सुन ले,
चीख़ को साज़ बना लो |
जैसा करोगे, वैसा भरोगे,
मुर्रव्व्त को रिवाज़ बना लो |
खुश रहना हो जो तुम्हे,
खुशनुमा मिज़ाज बना लो |
याद आये जो बचपन, अजब,
कागज़ का जहाज़ बना लो |
Great poem, Agastya!
Thanks, Neha 🙂
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति 👌🏼
धन्यवाद ।
Wah
Thanks!