चाहत या फ़िर नसीब

कोई है बहुत दूर, तो कोई है बहुत करीब |
दो ही चीज़ों का खेल है सब,
चाहत या फ़िर नसीब |

क्या दिया ? क्या लिया ?
यह सब झूठ है, बने बनाये है |
हमारे दिल में जो आया हम वही करते आये है |

हम तो निकले थे घर से पत्थरों की तलाश में,
पत्थर तो ना मिले, बनाये रेत के महल आकाश में |

एक वह है जो जीने के लिए मरते है |
एक हम है जो मरने के लिए जीते है |

पत्थरों की तलाश का अंत हुआ,
हम इंसानियत ढूंढने चल दिए,
अकेले नहीं थे, साथ मेरे ग़म और साये भी चल दिए |

दरबदर हुए, थक गए और ज़िल्लत मिली हमें |
पर अजब, दुनिया में इंसानियत ना मिली हमें |

मेरे सफ़र में दोस्त कम हुए, ज़्यादा हुए रक़ीब,
दो ही चीज़ों का खेल है सब, चाहत या फ़िर नसीब |

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