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चाहत या फ़िर नसीब
कोई है बहुत दूर, तो कोई है बहुत करीब |दो ही चीज़ों का खेल है सब,चाहत या फ़िर नसीब | क्या दिया ? क्या लिया ?यह सब झूठ है, बने बनाये है |हमारे दिल में जो आया हम वही करते आये है | हम तो निकले थे घर से पत्थरों की तलाश में,पत्थर तो ना … Continue reading चाहत या फ़िर नसीब
Agastya Kapoor