लड़ के ग़म से जीत सकता है कौन ?
बिना नशे के जी सकता है कौन ?
आज तो बिन पीये ही मदहोश हो गया,
यादों को इस दिल से छीन सकता है कौन ?
कौन है जो मुझे अपना बनाये ?
फिर से ज़िंदा कर सकता है कौन ?
निकाल के ज़हर को इस दिल से,
आँखों से बहा सकता है कौन ?
सूख गए जो दरख़्त के पत्ते,
छाँव उनकी पा सकता है कौन ?
उजड़ गया जो कोई आशियाँ,
उसमें बहार ला सकता है कौन ?
ये जो अँधेरे है रह-ए-इंसान में,
रोशन उनको कर सकता है कौन ?
जो शीशा टूट कर बिखर जाए,
सूरत अपनी देख सकता है कौन ?
मेरे गुज़र जाने से हर बज़्म वीरान हो,
फिर जग में अजब बन सकता है कौन ?
खुबसूरत
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