आधी ज़िंदगी भी बीत गयी, आधा साल भी |
आधी जुर्रत भी खत्म हुई, आधी मज़ाल भी |
याद करके तुझे खुद पी लिया काला जाम |
आधी हुई ज़िंदगी निहाल, आधी बेहाल भी |
कुछ ना हो तो सिर्फ़ तजुर्बा भी है गवारा |
आधी सब बात सच है, आधी ख़याल भी |
सुनते ही होंगे उन पतंगों का हश्र |
आधी बेफिक्र उनकी हालत, आधी फटेहाल भी |
आधी ज़िंदगी भी बीत गयी, आधे सवाल भी |
आधी ऐसी ही बीत गयी, आधी इस्तेमाल भी |
गुल्लक में क्यूँ देखता है बार-बार अजब ?
आधा महीना भी खत्म हुआ, आधा माल भी |
बहुत खूब।👌👌
धन्यवाद।