आज ख़ुशी मिली है इतनी, नहीं कभी मिली है जितनी |
खिल गए रंग तितली जैसे, मैं भी खिल गयी हूँ इतनी |
आज मेरी राह को मंज़िल मिल गयी,
साफ़ दीखता है मंजर,
लहराते उड़ते जाना है वहाँ, हट गयी धुंध थी जितनी |
मोर पंख खिलते सावन-बाधो में छम-छम जैसे,
फूलों में फिरूँ भंवर करके हम-हम जैसे |
मन आज हुआ हवा सा पागल, यह कैसे छू लिया तूने ?
यह एहसास तेरे छुअन की,
महसूस हुई ना कभी प्यास इतनी |
दो इन्द्रधनुष सावन के, दो चाँद जैसी रातें,
प्यार का ये दौर कम पड़ेगा, चाहे बीते उम्र कितनी |
तू मेरे पूजा के दोहे, मैं तेरे सपनो की गीतांजलि,
आजा, थाम ले बाहो में वरना देख जान यह चली |
पड़ रहे है न पैर ज़मीन पर, बादलों के रथ पर हूँ,
सब जग बूंदों सा लगता है, ऊचाईयों में हूँ इतनी |
मैं बावरी, नापूँ प्यार को तोड़के चूड़ियाँ कितनी,
गहरे मोती समुंदर में, खो गयी तुझमें मैं इतनी |
ओस की बूँद सुमन पर जैसे सजीला प्यार पिया,
जल ने मछली और हंसा ने स्वाति जैसा प्यार किया |
तू मेरा नायक है, मैं तेरी नायिका, खबर है इतनी |
आज ख़ुशी मिली है इतनी, नहीं कभी मिली है जितनी |