हम जानते है पर हम वह काम नहीं कर सकते |
अब यह हाथ किसी और के लिए नहीं बड़ सकते |
हमे खबर है के एक साथ या सहारा चाहिए,
पर ये होंठ अब फिर से वही बात नहीं कर सकते |
उनकी यादों की सौगात है हमारे पास,
पर उन्हें हम जला नहीं सकते |
राह-ए-मंज़िल तो सीधी है शायद,
पर हम अब वह राह पर नहीं चल सकते |
जब हक़ में नहीं तो क्यों लगाएं दिल ?
हम इस बार फिर इत्तेफ़ाक़ नहीं रख सकते |
हमे तो मिली है मात मोहब्बत में, यार अजब,
अब किसी और पर ऐतबार नहीं कर सकते |
Sir doosri line..me agr.नही बड़ सकते की जगह बड़ नही सकते रहता तो ज्यादा अच्छा लगता।।ऐसा मेरा सोचना है।बाकी आपने बहुत अच्छा लिखा है।