ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं

देखते है सब ग़म दूसरों का,
ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं |
इनमें भी तो कहानी छुपी है, इनमें भी तो वफ़ा है |
इनमें भी तो ज़िंदगी है, इनकी दास्ताँ कोई पूछता नहीं |
ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं |

एक रात, मैं बैठा था आँखें बंद किये,
अपना वफाओं का अज़र लिए |
आँख लग गई और मैं सो गया,
ख्यालों की दुनिया में खो गया |

दस्तक हुई दरवाज़े पे, देखा तो मेरा अश्क़ था |
आँखें उसकी नम थी, चेहरा वीरान था |
पूछा जो उसकी मायूसी का सबब.
सिसक के उसने अपनी दास्ताँ कही |
ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं |

आँख खुली तो देखा, कोई ना था, खामोशी थी |
शमा बुझ चुकी थी, आँखें नम थी |
ख्वाब था, ख्वाब ही सही,
ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं |

आँखों में है, पर दिल के पास है |
ग़म में तो है ही, ख़ुशी में भी साथ है |
इसका दिल मोम का है, सबसे आला दोस्त यही |
देखते है सब ग़म दूसरों का,
ग़म अश्क़ों का कोई देखता नहीं |

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