यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी अंजान थी |
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी बेजान थी |
दुनिया का पहला निवाला चखा था हाथों से,
वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी हैरान थी |
हम दोनों ने एक ही थाली से खाया था निवाला,
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी मेज़बान थी |
अपने ऊपर चढ़ा रखे थे गिलाफ़ अजनबियत के,
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी मेहमान थी |
कुछ मुझे नहीं समझा, कुछ उसने नहीं समझाया,
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी परेशान थी |
रोज़ हर तरफ दिखते रहते थे जलवे ही जलवे,
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी बेजुबान थी |
क्यों नहीं लौट आती वो खोटे सिक्के की तरह ?
यह उस वक़्त की बात है, जब ज़िंदगी मेहरबान थी |
well written…
Thanks a lot for the kind words!