मेरे गाँव की बात

दिन हो, या हो चांदिनी रात,
बजते ताशे जैसे दूल्हे की बारात |
ऐसा प्यारा गाँव है मेरा और मेरे गाँव की बात |

दिन में सूरज की पूजा होती,
रात में होता काम दूजा |
सभी मिलकर रहते है, ज्ञानी, पंडित हो या खोजा |

लस्सी और शराब की नदियाँ बहती है,
ऐसी है अपनी ठाट |
ऐसा प्यारा गाँव है मेरा और मेरे गाँव की बात |

सभी अमन से रहते है, मुस्लिम हो या जाट,
ऐसा प्यारा गाँव है मेरा और मेरे गाँव की बात |

माँ का आँचल नीलगगन हमारा,
ममता से भरी है धरती |
कोई बनता ट्रक ड्राइवर तो कोई होता फ़ौज में भर्ती |

सुनहरी परी से खेत हमारे कितने प्यारे लगते है |
एकदम जैसे शादी के लिए बाराती सजते है |

सुबह-सुबह की नमाज़, पूजा हो या गुरबानी |
सभी रब्ब को याद करते अपनी-अपनी ज़ुबानी |

सूरज की किरणे नयी दिशा ले आती है |
सोहने-सोहने हाथों से वह मेरा खाना ले आती है |

बैसाखी की रात जब वह चुन्नी ओढ़े हंसती है |
मेरे सपनो की रानी जैसे मेरे दिल में बसती है |

चौंक पर है वह बड़े काका की दूकान,
और सामने है ज़मींदार का मकान |

गाँव की मिट्टी से कितनी भीनी खुशबू आती है,
जो शहीद हुए उन वीरों की याद दिलाती है |

उस धरती से तिलक करके आधी ज़िंदगी बितायी है |
और आधी ज़िंदगी शहर में धक्के खाते बितायी है |

ढोल बजते, तुम्बी बजती,
नित दिन है बैसाखी की रात |
ऐसा प्यारा गाँव है मेरा और मेरे गाँव की बात |

ख़ुदा यूँ ही करते रहे रहम-ओ-करम की बरसात |
ऐसा प्यारा गाँव है मेरा और मेरे गाँव की बात |

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