मुझे प्रश्न करे नील ध्रुव तारा,
और कितने दिन रहूँगा मैं बेसहारा |
जवाब कोई भी ना दे सका मैं सिर्फ़,
राह ढूंढते बीत गया यह जीवन सारा |
ना जाने किसने यह प्रीत की लौ जलायी,
देख के सूरज की रोशिनी भी शरमाई |
अपने ही साये के पीछे घूमता रहा,
एक दिन देखा के मैंने तुम्हे हारा |
मैं राह नहीं ढूंढ़ता, वो ढूंढ़ती है मुझको |
मेरा ही मन सिर्फ़ समझता है मुझको |
मेरे चारों और सब कुछ खो गया,
मैं सिर्फ़ जैसे एक गतिहीन धारा |
मुझे प्रश्न करे नील ध्रुव तारा,
और कितने दिन रहूँगा मैं बेसहारा |
Awesome sir..
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Sure.