इतनी तारीफ़ ना करो, मर जाऊंगा |
बस ! और प्यार नहीं, मर जाऊंगा |
अभी और नहीं पी सकता,
बस दोस्त ! अभी घर जाऊँगा |
इतनी ज़ोर लगाने की ज़रुरत नहीं,
कच्ची दीवार हूँ, छूते ही गिर जाऊँगा |
समेट लो ना मुझे मुट्ठी में,
शीशा हूँ ना, बिखर जाऊँगा |
ऐसे ही नागवार गुज़री है ज़िंदगी,
और दुआ ना दो मुझे, मर ही जाऊँगा |
तो क्या हुआ जो अभी हूँ अजब ?
कुछ वक़्त गुज़रते सुधर ही जाऊंगा |