फुर्सत से

मिलेंगे अपने आप से, इस दिल-ए-बेपाप से |
बेनक़ाब फुरसत से, मगर कभी फुर्सत से |

मैंने नहीं मांगे थे दर्द,
कहाँ से आकर घिर गए ?
मिटटी के घर पर मेरे बादल,
ना जाने कहाँ से गिर गए ?

मिलेंगे अपने दर्द से, आहें सर्द से |
बेनक़ाब फुरसत से, मगर कभी फुर्सत से |

मैंने नहीं मांगी थी जन्नत,
तलवों पर बिछना मंज़ूर था |
मेरी ग़ज़ल कोई सुने या नहीं,
दिल ही में खीचना मंज़ूर था |

अपनी ही चीख सुनी कानो से,
सर उत्तर गया उनकी ज़ानो से |
अब अजब को भूख नहीं,
दिल भर गया टूटे अरमानों से |

मिलेंगे अपने रहीम से, अपने कमज़र्फ करीम से |
बेनक़ाब फुरसत से, मगर कभी फुर्सत से |

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