नेता

परसों तुझे टीवी पर देखा,
अरे ! तू तो कमाल बन गया |
तू तो बादशाह था, साला अभी हमाल बन गया |

सारे देश को बेचने का बोझ तूने ही उठा लिया |
सारे बचत का पैसा तूने अकेले ही लूटा दिया |
गज़ब है !

तेरे हाथ में पेन होता तो टैगोर बन जाता |
तेरे हाथ में माइक होता तो विवेकानंद बन जाता |
तेरे हाथ में तलवार होती तो ग्रेट शिवजी बन जाता |
तेरे हाथ में छड़ी होती तो बापूजी बन जाता |

पर तू तो लोटे वाला भिखारी बन गया |
बिमारी नहीं, महामारी बन गया |
छी !

अपनी माँ का बीच रास्ते कर रहा है बलात्कार,
और ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा है — देखो मेरा चमत्कार |

और साला, मज़े भी ले रहा है |
पर दोष किसी और को दे रहा है |

मैंने सोचा था राम बनेगा, तू तो बन गया नमकहलाल |
तूने कभी नहीं कहा मुझे के बड़ा होके बनेगा दलाल |
कमाल है !

सारी इंसानियत को एक बिस्तर बना डाला, यार तूने |
ये जीवन को एक नस्तर बना डाला, यार तूने |
ओह माय गॉड ! कैसे किया ?

मैंने तो सोचा की तू घर का चिराग बन गया |
अबे कुत्ते, मगर तू अंतर-आत्मा की आग बन गया |
सही है बॉस !

जी तो करता है के झंडे का डंडा तेरे अंदर डाल दूँ |
गरीबों से चूसा खून का तेरे मुँह में समुंदर डाल दूँ |

मगर यार, झंडे का डंडा क्यों ख़राब करूँ ?
खूब शराब पीकर तेरे चेहरे पर तेज़ाब करूँ |
क्या आईडिया है सरजी !

१४० करोड़ की जनता को एक ही साथ घुमा लिया |
तूने तो बचे-कूचे शेर के नाम पर भी कमा लिया |

मैं तो दूसरों से सीख-सीख के शायर बन गया |
हँ ! तू तो पावर में भीग-भीग के कायर बन गया |
*****

भूखे, नंगे, कुत्ते- कमीनों का अभिनेता बन गया |
दूर फिट्टे मुँह ! खोदा पहाड़, निकला चूहा |
तू तो नेता बन गया !

पर यार सॉरी, जो शीशे के घर में रहते,
वो दूसरों के घर में गाली नहीं कहते |
शशशशशशश !

गलती अपनी ही तो है, तूने मांगी, हमने दे दी |
बार-बार, चुप-चाप, खोल-खोल के बिंदास दे दी |

तुझे क्या गाली दूँ, तू भी चोर, मैं भी चोर बन गया |
तूने की बड़ी-बड़ी चोरी, मैं विरोध का चोर बन गया |

मेरे हाथ पेन, तलवार, माइक, छड़ी या कुछ भी आता |
फिर भी हाथ जोड़ के, ज़ुबान बंद किये सहना ही आता |
आम आदमी नो !

मेरे शहर आओ, खाओ-पियो-थूको, मेरा क्या हलता है ?
मैं तो छोटा-मोटा आम आदमी हुँ, सब चलता है |

तू भिखारी, सीख देने वाला बन गया |
मैं पिचकारी, भीख देने वाला बन गया |

घर से निकलते ही अमरीकन बन जाता हूँ |
खैरात बटती है तो अफ्रीकन बन जाता हूँ |
डुड !

कभी — गो ग्रीन-गो ग्रीन — के नारे लगाता हूँ |
करता कुछ नहीं, दारु पीकर, चढ़ के, सो जाता हूँ |

सब बकवास काम करता हुँ पीकर स्प्राइट |
मुझसा कोई नहीं यहाँ दुनिया में हिप्पोक्राइट |

दरससल्, मुझे है ही नहीं सफाई और हरयाली की दरकार |
मगर भोगता रहता हुँ की कुछ नहीं करती सरकार |

सिर्फ़ एक रियलिटी शो में चांस दे, खूब पिलाऊँगा |
मुझे क्या लेना-देना देश से, मैं तो सिर्फ़ हिलाऊगा |
१५ अगस्त को झंडा !

ब्रो ! तू लूटेरा अपने आप बन गया |
तू सपेरा मैं सांप बन गया |

लोन से लधी ज़िंदगी का तू ही है निर्माता |
और मेरा ज़मीर भी कहाँ है शर्माता |
बास्टर्ड !

ये दुनिया गोरख धंधा है, कब समझूंगा ?
चुप्पी का फंदा पहन लिया है, कब समझूंगा ?

अब से तुझे गाली देना बंद, मेरे भाई |
तो क्या जो तू बदनाम आदमी बन गया |
मैं भी तो ***** आम आदमी बन गया |

तू शेर बनकर चाहे भंग कर ले सब शांति |
पर मैं गधा बनकर एक दिन लाऊंगा क्रांति |

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