यूँ तो रंग को लगता है एक अरसा उतरते-उतरते,
देखते है क्या गुज़रती है बूँद पर गुहर होने तक |
यूँ तो चला ही जाता है अँधेरा रात उतरते-उतरते,
देखते है क्या होता है शमा पर सहर होने तक |
यूँ तो गुज़र ही जाता है दिन नशे को उतरते-उतरते,
देखते है क्या रंगत है शराब पर ज़हर होने तक |
यूँ तो वक़्त लगता ही है उनके गुस्से को उतरते-उतरते,
देखते है क्या है मज़ा दुश्मनी जान-ए-जिगर होने तक |
यूँ तो बीत जायेगी ज़िंदगी दिल से उतरते-उतरते,
देखते है क्या गुज़रती है दिल पर कहर होने तक |