कईं बार मैंने तुझे देखा,
सोहने यार मैंने तुझे देखा |
पर्बत की ऊचाइयों में,
समुंदर की गहराईयों में तुझे देखा |
जाम-ए-फना-ए-बेखुदी पीकर,
पैमाने में तुझे देखा |
इसतराब-ए-इंतज़ार में,
मैंने हवाओं में तुझे देखा |
फूलों की खुशबू में,
माहताब की चांदिनी में तुझे देखा |
धड़कन और साँसों में देखा,
पंछी बन आसमान में तुझे देखा |
चारों जानिब तू ही तू है,
ख़ुदा से बढ़कर तुझे देखा |
सब जगह तेरे ही जलवे देखे,
अजब में, गजब में तुझे देखा |
रोशन जमाल-ए-यार से है ज़िंदगी,
चिराग-ए-इबादत में तुझे देखा |
शीशे के जब सौ टुकड़े किये,
उनमें सौ-सौ बार तुझे देखा |
मुम्बई नहीं गये है क्या भाई….
Bahut sundar aur badiya likhate hai sir aap
Thanks lot dear brother!