मैं हुँ तवायफ़, तवायफ़ मेरा नाम |
दुनिया में हुँ इसी नाम से बदनाम |
यहाँ की सीढ़ियाँ किसी घर में नहीं उतरती,
यह बाज़ार और यह कोठा है मेरा इनाम |
यह मर्द-ए-बाजार की मिलकियत है मुजरा ,
बिस्तर का सफर ग़ज़ल और कथक से गुज़रा |
मेरे आँगन की मिटटी से बनती देवी की मूरत,
और दुनिया की शराफत मुझ पर लगाती इलज़ाम |
तवायफ़ कहाँ किसी से मोहब्बत करती है ?
पर जब करती है तो क़यामत करती है |
हालात से बनी थी, मंज़िल से नहीं,
दिल में क्यों बिठाएँ ये खुसरा-ए-आयाम |
Sundar
Thanks a lot!