ज़यादा मज़ा आया

ज़िंदगी का जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |
दर्द-ओ-ग़म का जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |

रोने से कुछ नहीं हुआ हासिल,
रोने का जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |

एक अर्जे से दिल वीरान था |
तन्हाई का जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |

इश्क़-नफरत,
इल्म-गफ़लत,
कैफ़ियात-इबादत,
दोनों में उलझन थी |
दोनों का जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |

ऐब तो मुझमें था |
मेरा एक ही दिल था |
मेरी सिर्फ़ दो ही आँखें थी |
खुद अपना ही जब मज़ाक बनाया,
ज़यादा मज़ा आया |

6 thoughts on “ज़यादा मज़ा आया

  1. ऐब तो मुझमें था,
    मेरा एक ही दिल था,
    मेरी सिर्फ दो ही आँखें थी |
    खुद अपना ही जब जब मज़ाक बनाया,
    ज़यादा मज़ा आया।
    बहुत दर्द अभी भी शेष है। खूबसूरत।👌👌

  2. मज़ाक पे तो जब कभी यूँ हंसी ना आयी हमें
    पर जब जब गम ने तड़पाया तो उसे मज़ा चखा

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