कुछ सपने हक़ीक़त, कुछ जाली थे |
मैं तब बर्बाद हुआ जब मेरे हाथ खली थे |
एक साफ़ दिल लेकर कितने पाप हो गए,
कितने नाज़ुक फूल, कितने क़ातिल माली थे |
एक-एक करके वह हर लकीर ले गया |
शायद, सारे मेरे अरमान खयाली थे |
सारी अला तो वही ले गया अजब,
हम मूर्ख बंदे, वह सब जमाली थे |
मैं तब बर्बाद हुआ जब मेरे हाथ खली थे |