मेरे यादों के झरोखे से,
एक पल चुरा लाया हूँ मैं |
इसको रखूँगा संभालकर,
जो कल चुरा लाया हूँ मैं |
बड़े जतन से पेड़ पे चढ़कर,
दो-चार आम तोड़ लिए है |
खाते है मिलकर यार,
चल, चुरा लाया हूँ मैं |
आजकल काफ़ी वीराना है ?
शायद माया जाल का ज़माना है ?
पुराने गानों के कैसेटों से,
हल-चल चुरा लाया हूँ मैं |
जिंदगी अभी छुपा-छुपी खेल रही है,
कुछ हम भी खेल लेते है,
कुछ गुब्बारे, कुछ गोटियाँ,
कुछ पल चुरा लाया हूँ मैं |
kya baat hai wah…
nice 😎😎😎
Thanks a lot dear.
वाह।।।खूबसूरत कविता।👌👌
Thanks a million!