गया तो था

गया तो था बड़ी ज़ोर-शोर से,
लौट आया वापिस उसी ओर से |

मन तो बिना पंख का पंछी,
कभी कटा ही नहीं इस डोर से |

बड़ी कठिन है राहें ज़ीस्त की,
भागता ही रहा उस छोर तक, इस छोर से |

कुछ हाल-ए-दिल ऐसा हुआ अजब,
वो बयां करती रही आहिस्ता-आहिस्ता,
और मैं बोलता रहा — ज़ोर से, हुज़ूर, ज़रा ज़ोर से |

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