क्यों है ?

ऐसा ही है तो ऐसा क्यों है ?
यह दुनिया है तो खिलौना क्यों है ?

और अगर, यह खेल ही है मालिक |
तो खेल इतना घिनौना क्यों है ?

जब टूटकर बिखर ही जाना है |
तो फिर यह सपना सलोना क्यों है ?

सबको ही आता है बनना अजब,
फ़िर यह तमाशा, यह जादू-टोना क्यों है ?
ऐसा ही है तो ऐसा क्यों है ?

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