हर सु निफाक़ छायी है, कुछ ऐसे, कुछ वैसे |
अँधेरी शफ़क़ आयी है, कुछ ऐसे, कुछ वैसे |
चूस लो मेरे खून का आखरी क़तरा,
दे दो मुझे ज़िंदगी का भी ख़तरा |
बदल दिया है मेरे इस खून को लोहे से,
और फिर,
चुंबक से खिंचवाई है, कुछ ऐसे, कुछ वैसे |
मेरे नाम पर लगी है चु की मात्रा,
आँखें खोले हो रही है सपनो की यात्रा |
खुद ही चुरा लिया ज़मीन-आसमान मेरा अजब,
अब ज़िंदगी उफ़क़ लायी है, कुछ ऐसे, कुछ वैसे |