लहू के नाम अलग-अलग अनेक है,
पर हम दोनों के लहू का रंग एक है |
अमीरों के लिए है अय्याशी और राशन |
गरीबों के लिए सिर्फ़ उम्मीदें और आश्वासन |
क़तार में से चुप-चाप धीरज निकल आया |
सुबह होते ही एक काला सूरज निकल आया |
यहाँ सत्ता, सट्टेबाज़ों की रेत की है |
खेल में मंझी हुई मिटटी खेत की है |
मुफ़्त की मिली आज़ादी का कोई दाम नहीं |
गीता-क़ुरान की शिक्षा का यहाँ कोई काम नहीं |
गोरों के हाथों फ़िर नीलाम हो गयी |
आज़ाद धरती फ़िर ग़ुलाम हो गयी |
सौदागरों ने बनाया है कालचक्र,
इस युग का क्या करेगा ये दिल बेहाल फक्र |
नीरस पत्तों का एक वृक्ष नीरज निकल आया |
सुबह होते ही एक काला सूरज निकल आया |
प्रदर्शन का है यह खेल-तमाशा |
सूली पर लटकी है कहीं आशा |
माँ की ममता है नीर भिगोती,
इंसान छीन रहा है जानवर की रोटी |
ज़म और ज़मीन का तीव्र कारोबार |
कैसे खामोश है ये नर-नार ?
साम, दाम, ढंड, भेद फिर गरज निकल आया |
सुबह होते ही एक काला सूरज निकल आया |
हर जुबान बोल रही है चाणक्य नीति,
मैली गंगा माँ लोगों के पाप है पीती |
हिंसा की जड़ पर महात्मा की तस्वीर छाप दी |
दौलत और मोहबत एक पलड़े में नाप दी |
सीमा पर अंजान मौत मर रहे है रक्षक,
अंजान नियति बेच रहे देश के भक्षक |
गफ़लत और धोखे का ये देश हो गया |
प्रजातंत्र रास्ते में शेष हो गया |
कहीं कचरे के ढेर से मिरज निकल आया |
सुबह होते ही एक काला सूरज निकल आया |
Awesome 👍👍
Thanks a lot Naina.
It’s my pleasure 😊
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