कहाँ जा रहे थे, कहाँ आ गए हम ?

कहाँ जा रहे थे, कहाँ आ गए हम ?
आँखों से प्यार छलक गया, घिर आये सौ ग़म |

वो अजब जो सिखाता था दूसरों को जीना,
आज खुद ही ज़िंदगी की राह में हो गया है गुम |

अगर यही जीना है,
तो ज़िंदगी की शमा जलाये रखेंगे |
उन्हें खो कर भी,
उन्हें पाने की उम्मीद लगाये रखेंगे |

ख़ुशी एक साया है,
हँसते ही आँखें हो जाती है नम |
पर जब सूरज ढल जाता है,
साया हो जाता है गुम |

मौत ने सिखाया है ज़िंदगी को जीना |
ग़म ने सिखाया है अनवर को पीना |

काँटों ने सिखाया है फूलों को खिलना |
हवाओं ने सिखाया है शाखों को हिलना |

अंधेरों ने दिया है सुबह को उजाला |
इसी प्यार ने निकाला है मेरा जनाज़ा |

इंतज़ार-ए-सबा में है अब हम,
कहाँ जा रहे थे, कहाँ आ गए हम ?

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