और हो मैकदे

बन गया है फसाद मज़हब का हत्यारा,
और हो मैकदे देश में, यही है चारा |

इंसान सब से जीता पर खुद से हारा,
एक जाल और एक तो नक़ाब ने उसको मारा |

मंदिर-मस्जिद बैर बढ़ाते, मेल कराती धारा,
और हो मैकदे देश में, यही है चारा |

चाहे हो सर ज़मीन, चाहे हो संसार सारा,
अमन से बसर हो ज़िंदगी यही है नारा |

उफ़क़ के पार चलें मदहोश रहें महीने बारह,
और हो मैकदे देश में, यही है चारा |

क्यों खाएं रोटी जिसमें मिले आंसूं खारा ?
दिशा जो दिखाए अजब बनेगा वो सितारा |

ये डूबती कश्ती को मिलेगा कभी तो सहारा,
और हो मैकदे देश में, यही है चारा |

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