लौट आया है हिंदी पल्प फिक्शन

hindi pulp fiction

७०-८०-९० का दशक बड़ा ही रोचक था | केबल टीवी के पहले अख़बार और किताबें ही एक भारतीय का ज्ञान और मनोरंजन का ज़रिया था | हर रेलवे स्टेशन पे व्हीलर की दूकान हर तरह की किताबों का अड्डा था | ये किताबें अपनी सस्ते कागज़, कातिल तस्वीरें, अजब-गजब नाम और सस्ते दामों की वजह से हर भारतीय का हीरो थीं |

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हिंदी पल्प फिक्शन बोहोत चलती थी और काफ़ी प्रख्यात थी | पर प्रख्यात लेखक वेद प्रकाश शर्मा, सुरंद्र मोहन पाठक और उनके जैसे कुछ औरों की मृत्यु के बाद ये शैली एकदम खत्म हो गयी |

हिंदी पल्प फिक्शन का बाज़ार बोहोत बड़ा है और इन्टरनेट और नए ज़माने के लेखकों की मेहेरबानी से ये शैली अब फ़िर से अपने पैरों पे खड़ी हो रही है | इन नए लेखकों के बीच मैं भी एक एसा लेखक हूँ जो इस शैली को फ़िर से अपने पैरों पे खड़ा होने में सहायता कर रहा हूँ |

भले ही मैं उन महान पुराने लेखकों की तरह नहीं लिख पता, पर मैं अपना सर्वश्रेष्ट प्रयास कर रहा हूँ | इन्टरनेट पे कहानियाँ लिख रहा हूँ | सोशल मीडिया ने हम जैसे लोगों को एक और अफसर दिया है की हम दुनिया भर के हिंदी पल्प फिक्शन के चाहने वालों के लिए कुछ लिख पायें |

 

मैं  नंगी रात की ओवरड्रेस्ड कहानियाँ  नामक फेसबुक पेज पे कहानियाँ लिखता हूँ | अब तक मैंने ९ कहानियाँ लिखीं है | ये कहानियाँ छोटी है पर है बोहोत मज्ज़ेदर | रात होते ही लोगों या शहरों के असली रंग उजागर होते है और इन रंगों में बेशर्म, यादगार लम्हे, खुल कर, परत दर परत अपनी कहानी सुनाते है | नंगी रात की ओवरड्रेस्ड कहानियाँ—कुछ एसे ही लम्हों का संग्रह है |

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