जूनियर कॉलेज

दसवी की परीक्षा में सावन को ७८% मिल गए थे | ठीक-ठाक ही थे उस ज़माने में जब हिंदी फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ने सारे देश में धूम मचा राखी थी |

सावन को एक अच्छे कॉलेज में दाखला लेना था तो मुंबई के सुंदर जय-हिंद कॉलेज में जैसे-तैसे आखरी लिस्ट में आखरी नाम आ ही गया |

कॉलेज अति सुंदर था | हिंदमहासागर के किनारे था | क्या हवा, क्या नज़ारा, क्या लड़कियां — वल्लाह, एकदम परी जैसी लड़कियां और परियों को उसने मिनी-स्कर्ट में पहली बार देखा था | लौंडे तो हवा सी तेज़ गाड़ियों में जोर-जोर से इंग्लिश गाने बजाते हुए दीखते थे | सारा दिन बस यहीं चहेल-पहेल रहती थी — परियां, गाड़ियां और लौंडे |

पहले दिन ही सावन का स्वागत हुआ — एकदम सो.बो स्टाइल में |

चल बे, अपना आइडेंटिटी कार्ड दिखा |

जी |

और कार्ड वापिस चाहिए तो मेरे पैर पड़, तेरा सीनियर हूँ |

सावन झट पैरों में गिर गया |

अबे, मज़ाक कर रहा हूँ | समझ नहीं आता क्या ?

आता है |

यह सुनकर सीनियर और सावन दोनों हस पड़े और मित्र भी बन गए | पहला दिन अच्छा बीता | क्लास भी पता चल गयी थी — सेक्शन D | जिनका आखरी लिस्ट में नाम आया था उन्हें यही सेक्शन मिला था |

सेक्शन D एक छोटी सी क्लास थी और सावन कुछ अजीब | क्लास में घुसते ही लड़कियों ने उस पर बातें शुरू कर दी | आदत से मजबुर वह चुप-चाप आखरी बेंच पर जाकर बैठ गया | जैसे-तैसे हिम्मत करके उसने अपने आप को लड़कियों से परिचित कराया | एक ख़ास लड़की पे दिल तुरंत — एट थद स्पीड ऑफ़ लाइट — आ चूका था |

दिल प्रेम से भरा था, आवारा था और फ़ोकट भी |

लड़की ने सुंदर ब्राउन मिनी-स्कर्ट पहन राखी थी | आँखों पर चश्मा भी था — कुछ-कुछ सावन के चश्मे जैसा ही |

लड़की का नाम था नाज़ |

कुछ बातें तो हुई पर नाज़ सिर्फ़ इंग्लिश में बात करती थी और सावन ज़्यादातर हिंदी में | बर्गर और वडा-पाव जैसा कुछ मेल-मिलन हुआ पर नाज़ का दिल अभी धड़का नहीं था | वह पॉश इलाके के पॉश स्कूल से आई थी और सावन टपोरी इलाका — घाटकोपर — से आया था |

पर आ ही गया था |

सावन इकोनॉमिक्स में होश्यार था और नाज़ होश्यारी में — उस साल वो कॉलेज की रोज़ क्वीन भी बनी |

धीरे-धीरे बातों का सिलसिला बढ़ा | इकोनॉमिक्स के नोट्स घर और दिल बदलने लगे | पर वह दिन जिसने सावन की ज़िंदगी बदल थी थी, वह एक हिंदी फिल्म की बरसाती रात तो नहीं पर दिन जैसी कुछ था | बारिश बोहोत थी पर सावन जैसे-तैसे कॉलेज आ ही गया | नाज़ तो पास में ही रहती थी, वह भी आ गयी |

सावन, यार इतनी बारिश में कैसे पहुँच गए ?

बस तेरा प्यार मुझे खींच लाया, नाज़ |

क्या ?

नहीं, कुछ नहीं |

इस बात ने सावन को पुरे कॉलेज में सुपर-मैन बना दिया था | इतनी की इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर ने फाइनल परीक्षा में एक एक्स्ट्रा परसेंट देने का वादा कर दिया |

कॉलेज खत्म होते ही सावन ने नाज़ को कैंटीन जाने का प्रस्ताव दिया | नाज़ ने भी तुरंत — एट थद स्पीड ऑफ़ लाइट — प्रस्ताव स्वीकार कर लिया | शायद, दो दिल एक साथ धड़कने लगे थे, शायद, धड़कन धडकना सीख रही थी |

दोनों ने कैंटीन का एक कोना पकड़ लिया | सावन कॉलेज की सबसे सुंदर लड़की के साथ बैठा था |

मुझे इकोनॉमिक्स के सिलसिले में कुछ सवाल है तो मैं तुमको कब फ़ोन कर सकती हूँ ?

तुम मुझे अपना टेलीफोन नंबर दे दो, मैं खुद करूँगा |

हाँ लो, ५१२७२०२ |

आज शाम पांच बजे कॉल करूँ ?

येस डिअर |

कुछ देर मिएँ दोनों कैंटीन से निकल पड़े | नाज़ गहर चली गयी और सावन टॉयलेट |

अंदर घुसते ही “येस” ऐसा ज़ोर से अपने आप से चिल्लाया | ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की का टेलीफोन नंबर मिला था | ख़ुशी से पागल हो चूका था और बाकी सारा दिन पांच बजने की राह तकता रहा |

पांच बजते ही दोनों ने बातें शुरू की | खूब बातें हुई, अंतहीन बातें हुई | उसके बाद हर शाम यही अंतहीन बातें वाला सिलसिला शुरू हुआ | उसे बाद तो दोनों पक्के दोस्त बन गए |

समय भी बड़ा बलवान है और तेज़ भी | प्रेम से भरे दिलवालों के लिए तो समय नटखट और निर्दयी भी होता है | यह साल धीरे चले एसा सावन चाहता था अपर साल तेज़ी से — एट थद स्पीड ऑफ़ लाइट — गुज़र गया |

जूनियर कॉलेज का आखरी दिन पास था पर सावन अपाने दिल की बात नाज़ से कह नहीं पाया था | पर कहता क्या ? उसे खुद ही नहीं पता था की दिल में जो चल रहा था वो असल में है क्या — प्रेम, मित्रता या वासना ? या कुछ और ही ?

जूनियर कॉलेज का आखरी दिन आ ही गया | सावन ने यादगार के लिए सबके ऑटोग्राफ अपनी सफ़ेद टी-शर्ट पे लिए |

नाज़ ने ठीक दिल पर ऑटोग्राफ दिया पर नाम नहीं लिखा, सिर्फ़ ५१२७२०२ लिख दिया |

दिन खत्म हो चूका था | रात घनी और जवान हो चुकी थी | रात में दोनों एक दुसरे को थैंक्स बोलने के लिए फ़ोन किया | दोनों बात करते-करते रोते भी रहे |

क्या पता के फ़िर अगले साल एक क्लास में हो ना हो ?

एसा सोचते-सोचते सावन की आँख कब लग गयी पता ही नहीं चला और वह फ़िर जूनियर कॉलेज की यादों में खो गया |

अगले दिन सुबह-सुबह घर के दरवाज़े पे घंटी बजी | सावन धीरे-धीरे दरवजे की और बढ़ने लगा | आँख अभी गीली ही थी | देखा तो कूरियर-बॉय कुछ सामान लेकर आया था | बड़े ही आश्चर्य से उसने सामन ले लिया |

देखा तो एक ग्रीटिंग-कार्ड था |

ग्रीटिंग-कार्ड पर आँखें जैसे गढ़ ही गयी थी | रोते-रोते ग्रीटिंग-कार्ड पर लिखा संदेश पड़ता रहा — हैप्पी ४०th बर्थडे; फ्रॉम ५१२७२०२ |

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