लौट आया है हिंदी पल्प फिक्शन

७०-८०-९० का दशक बड़ा ही रोचक था | केबल टीवी के पहले अख़बार और किताबें ही एक भारतीय का ज्ञान और मनोरंजन का ज़रिया था | हर रेलवे स्टेशन पे व्हीलर की दूकान हर तरह की किताबों का अड्डा था | ये किताबें अपनी सस्ते कागज़, कातिल तस्वीरें, अजब-गजब नाम और सस्ते दामों की वजह … Continue reading लौट आया है हिंदी पल्प फिक्शन