मेरी ख्वाइशें कभी मेरे साथ नहीं आती |
यह तितली की तरह कभी हाथ नहीं आती |
चलता ही रहता हुँ अपनी फरमाइश से,
राह के अंत पर मंज़िल हाथ नहीं आती |
एक सवाल करना था खुदा से मुझे,
कब से उसकी कोई हद् हाथ नहीं आती |
सोचता हूँ सबको अजब ही बना दूँ,
पर कोई नयी तरकीब हाथ नहीं आती |