रंज की महक

रंज की महक बहुत नबील होती है |
यह बहुत कम लोगों को नसीब होती है |

क्या मज़ा जीने में बिना दर्द के ?
दर्द की परछाई बड़ी अज़ीम होती है |

आज इस महफ़िल में फूल नहीं तो क्या,
कांटे ही सही !
क्योंकि फूल तो मुरझा जायेंगे पर कांटे नहीं |

काँटों में रहकर भी जो उफ़ तक नहीं करते,
उनकी ज़िंदगी बहुत अजीब होती है |

वक़्त को कौन क़ैद कर सकता है,
कौन चुरा सकता है तक़दीर ?
जो डूबे होते है शराब में,
उंनकी ज़िंदगी बहुत रंगीन होती है |

क्यों नहीं होता जो हम सोचते है ?
क्यों नहीं मिलता जिसे हम चाहते है?

क्यों दिल टूटता है,
क्यों मोहब्बत क़ुर्बान होती है ?
किस से पूछूं यार अजब,
किस्मत भी बेज़ुबान होती है ?
जो लिखते है ऐसी ग़ज़लें,
उनकी ज़िंदगी भी कितनी ग़मगीन होती है |

3 thoughts on “रंज की महक

  1. क्या मज़ा जीने में बिना दर्द के ?
    दर्द की परछाई बड़ी अज़ीम होती है |
    pratyek panktiyan laajwaab …..khubsurat rachna.

Leave a Reply