आज़ाद देश का ग़ुलाम बंदा हूँ |
मैं इंसान नहीं, एक धंधा हूँ |
चुप रहो तो कहते है मुझे खुदगर्ज़,
लड़ता हुँ तो कहते है के खून गंदा है |
कहाँ है जलाना मेरे बस में ?
मैं सूरज नहीं, चंदा हूँ |
मुझे में नहीं है झूठ बोलने का ढंग,
मैं आदमी ही अजब बेढंगा हूँ |