चारों और खबर है |
कम हुआ इंसानी सब्र है |
लोग लड़ रहे है, मर रहे है |
हिंदु-मुस्लिम भीड़ रहे है |
बच्चे बिगड़ रहे है |
मुझे क्या ?
मेरा किसी से रिश्ता नहीं |
मेरा कोई नहीं |
मेरा सिर्फ़ मैं हूँ |
देश में आग लगी है |
शराफ़त भाग चली है |
लोग कहते है — देश के बारे में सोच |
मैं देश के बार में क्यूँ सोचूं ?
सिर्फ देश के बार में क्यूँ ?
सारी कायनात मेरा घर है |
पर क्यूँ ?
मुझे क्या ?
मेरा किसी से रिश्ता नहीं |
मेरा कोई नहीं |
मेरा सिर्फ़ मैं हूँ |
ना मैं आया, ना मैं जाऊँगा |
ना मैं बना, ना मैं मिटूंगा |
मैं तो पुरे भ्रमांड का हूँ |
मैं कुछ नहीं हूँ |
ना आग मुझे जला सकती है |
ना तलवार मुझे काट सकती है |
ना पानी मुझे भीगा सकता है |
ना हवा मुझे सुखा सकती है |
मैं अकेला |
मुझे क्या ?
मेरा किसी से रिश्ता नहीं |
मेरा कोई नहीं |
मेरा सिर्फ़ मैं हूँ |
well written
Thanks a lot.
Please read my first post
Done.
Awesome
Thanks a lot dear.
What a nice poem!
Thanks a lot!
Amazing. Thanks for sharing such a nice poem.🌸🌸🌸
वाह वाह क्या बात
Thanks!