नहीं देखा

कभी कोई नयी ख़ुशी को नहीं देखा |
तेरे बाद फिर किसी और को नहीं देखा |

सब ही मसरूफ थे अपने भ्रम में,
अश्क़-ए-साद को किसी ने नहीं देखा |

हर आँखें देख रही थी आतिशबाज़ी,
मेरी नज़र की ओर किसी ने नहीं देखा |

सिर्फ़ मशहूर हुए राँझा और महिवाल,
मेरी जुर्रत को किसी ने नहीं देखा |

आज पहली बार देख हैरान हो गया,
दिल के इतने ज़ख्मों को नहीं देखा |

यह आखरी मुलाकात है — कहा उसने,
और तमाम उम्र मुड़ के नहीं देखा |

मेरे मुंसिफ ने दिया मुझे उम्र-ए-ताज़िर,
खुद अपने फर्द-ए-जुर्म को नहीं देखा |

नौ गिरफ्तार-ए-बला बना दिया फ़रयाल को,
और मुड़ के तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँन को नहीं देखा |

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