दुनिया जीना चाहती है

दो-चार घूंट प्रेम के पीना चाहती है |
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

भले नए ना मिले मौके रोज़-रोज़,
पुरानी-फटी तक़दीर सीना चाहती है |
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

अपने अंदर हो ना हो तस्वीर उसकी,
जगह-जगह मंदिर-मदीना चाहती है |
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

बस एक वक़्त क़र्ज़ से मुक्त,
अपना चौड़ा सीना चाहती है |
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

हाथ मैं कमल का फूल,
मन में वीणा चाहती है |
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

अजब ही हाल है या ख़ुदा
घर में मूरत, बोतल में हसीना चाहती है,
जैसे भी हो दुनिया जीना चाहती है |

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