कोई

मोहब्बत भरी दास्ताँ सुना रहा है कोई |
ज़िंदगी को कब्रिस्तान दिखा रहा है कोई |

छिल गए है कदम सजदा-ए-यार में,
इस नास्तिक को देवस्थान दिखा रहा है कोई |

बीत गयी सारी उम्र क़त्ल करते-करते,
ज़माने बाद पाक-ए-स्तान दिखा रहा है कोई |

भूल गए है रास्ता वतन की तिजारत में अजब,
आखरी वक़्त में नक़्शा-ए-हिंदुस्तान दिखा रहा है कोई |

Leave a Reply