एक मुट्ठी राख़

छोटा सा जीवन है,
छोड़ो घमंड जब होना है ख़ाक |
तुम कौन हो ?
एक मुट्ठी राख़ |

ना मैं कुछ, ना मेरा कुछ,
समझ गया मैं ये बात |
मैं कौन हूँ ?
एक मुट्ठी राख़ |

एक पल में शुन्य हो जायेगा,
जो बनता है बेबाक |
वह कौन हैं ?
एक मुट्ठी राख़ |

कब शुरू, कब ख़त्म,
ना मिलेगा जिंदगी का सुराग |
हम कौन हैं ?
एक मुट्ठी राख़ |

8 thoughts on “एक मुट्ठी राख़

  1. बचती है सिर्फ एक मुट्ठी राख…

    और जो है मेरे साथ
    पर नही है आते हाथ…

    सुरज का तेज,
    अग्नि क ताप,
    सांसो की माला,
    प्राण की लीला,
    जल का सागर,
    आकश का विस्तार,
    मन की शक्ति,
    चित्त की भक्ति,
    ब्रह्म की अभिव्यक्ति…

  2. थोड़ी देर के लिए लगा की वाराणसी मणिकर्णिका घाट पर आ गया, बेहतरीन

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