छोटा सा जीवन है,
छोड़ो घमंड जब होना है ख़ाक |
तुम कौन हो ?
एक मुट्ठी राख़ |
ना मैं कुछ, ना मेरा कुछ,
समझ गया मैं ये बात |
मैं कौन हूँ ?
एक मुट्ठी राख़ |
एक पल में शुन्य हो जायेगा,
जो बनता है बेबाक |
वह कौन हैं ?
एक मुट्ठी राख़ |
कब शुरू, कब ख़त्म,
ना मिलेगा जिंदगी का सुराग |
हम कौन हैं ?
एक मुट्ठी राख़ |
Very nice❤️❤️❤️
Thanks a lot 🙂
बचती है सिर्फ एक मुट्ठी राख…
और जो है मेरे साथ
पर नही है आते हाथ…
सुरज का तेज,
अग्नि क ताप,
सांसो की माला,
प्राण की लीला,
जल का सागर,
आकश का विस्तार,
मन की शक्ति,
चित्त की भक्ति,
ब्रह्म की अभिव्यक्ति…
Beautiful
Thanks a ton!
Love
थोड़ी देर के लिए लगा की वाराणसी मणिकर्णिका घाट पर आ गया, बेहतरीन
Thanks a lot 🙂