अगर लगती है यह गाली गंदी,
सोचो किस हाल में जीती है रंडी |
शाम का वक़त है |
मर्द का दिल सख्त है |
गालियाँ-शोर और भूखी निगाहें,
क्या-क्या नहीं सहती है रंडी ?
कभी शिकार है |
कभी व्यापार है |
कोठे की वह झंकार है |
दिन-रात नाचायी जाती है रंडी |
कहाँ से आती है यह ?
कोई खेल का मोहरा है |
काम-उत्तेजना की बलि,
समाज का यह चेहरा दोहरा है |
उस कमरे से धुआ निकलता है |
ज़ोर-ज़ोर से चीखें भी निकलती है |
पिंजरे में फसे जानवर जैसे,
बेहोशी में कर्रती है रंडी |
जग में बदनाम है |
पर मिलती आम है |
किसीका का तो दोष है ?
यह किसका काम है ?
सब सहती है |
एकदम चुप रहती है |
देवियों के देश में,
रोज़ बिकती है रंडी |
बड़े ही काम ही चीज़ है यह,
बड़ी ही गहरी कहानी है इसकी |
जग में इनको मेरा सलाम,
माँ, किसान, जवान और रंडी |
Sahi bola… Gibbbb
कम शब्दों में एक पूरी व्यथा को लिखना बहुत ही अच्छी बात कही ।
बोहोत धन्यवाद। प्लीज आगे शेयर करें।
Take a bow man!! 🙌
Thnaks bro! Please do share it ahead!
इक अलग सोच और दर्द को बया करती हैं ,आपकी कविता।।,,, 👌👌
Thanks a lot Vinita. मैं आपका आभारी हूँ।