रंडी

अगर लगती है यह गाली गंदी,
सोचो किस हाल में जीती है रंडी |

शाम का वक़त है |
मर्द का दिल सख्त है |
गालियाँ-शोर और भूखी निगाहें,
क्या-क्या नहीं सहती है रंडी ?

कभी शिकार है |
कभी व्यापार है |
कोठे की वह झंकार है |
दिन-रात नाचायी जाती है रंडी |

कहाँ से आती है यह ?
कोई खेल का मोहरा है |
काम-उत्तेजना की बलि,
समाज का यह चेहरा दोहरा है |

उस कमरे से धुआ निकलता है |
ज़ोर-ज़ोर से चीखें भी निकलती है |
पिंजरे में फसे जानवर जैसे,
बेहोशी में कर्रती है रंडी |

जग में बदनाम है |
पर मिलती आम है |
किसीका का तो दोष है ?
यह किसका काम है ?

सब सहती है |
एकदम चुप रहती है |
देवियों के देश में,
रोज़ बिकती है रंडी |

बड़े ही काम ही चीज़ है यह,
बड़ी ही गहरी कहानी है इसकी |
जग में इनको मेरा सलाम,
माँ, किसान, जवान और रंडी |

7 thoughts on “रंडी

  1. कम शब्दों में एक पूरी व्यथा को लिखना बहुत ही अच्छी बात कही ।

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